Saturday, 17 December 2011

माँ मुझे लौट के आना है

भूमिका:

ट्रेन से दिल्ली आते वक़्त मैंने जब खिड़की से बीकानेर को पीछे छूटते हुए देखा, तब अनायास ही यह काव्य पंक्तियाँ सूझी, जिसे मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत किया है |
कोई व्यक्ति अपना घर-आँगन, अपना गली-मौहल्ला, अपने भाई-बंधुओं को छोड़ सामान्यत: नहीं जाना चाहता | पर कई बार मजबूरी वश किसी न किसी कारण से उसे जाना पड़ता है | कभी पढ़ाई तो कभी रोज़गार, कभी शादी तो कभी एक बेहतर जीवन की तलाश उसे परदेसी बना ही देती है | पर इंसान अपनी जन्मभूमि , जहाँ वह पला बढ़ा, को कभी भुला नहीं सकता | दिल के एक छोटे से कोने में अपने वतन की याद सदा जीवित रहती है |
हिन्दी फिल्म "नमस्ते लन्दन" का एक बेहद सुन्दर गीत है- "मैं जहाँ रहूँ, मैं कहीं भी हूँ, तेरी याद साथ है........."| मेरी मनोव्यथा इसी गीत की भावना से मेल खाती है, जिसे मैंने इस कविता में व्यक्त करने का प्रयत्न किया है |

जय जय राजस्थान... जय बीकानेर !!!!!

कविता:

मुझे लौट के आना है माँ, मुझे लौट के आना है
तेरी ममता छोड़ नहीं जाना है माँ, मुझको घिर घिर आना है

छुक-छुक छुक-छुक रेल दौड़ती, ले जाती परदेसों में
अपना देस जब पीछे छूटा, आ गया पानी आँखों में
नियति में ही जो लिखी जुदाई, तो यह पानी पी जाना है... माँ मुझे लौट के आना है

परदेसों के मित्र भी कभी, अनजाने से लगते हैं
निज घर के तो रजकण भी, जाने पहचाने लगते हैं
अपनापन है प्यार देस में, परदेस मुआ बेगाना है... ....माँ मुझे लौट के आना है

तन तो चाहे कहीं भी हो, मन सदा देस में बसता है
महफ़िल मुजरा कहीं का देखें, बाजा देसी जचता है
मैंने अपनी मरुधरा को, स्वर्गसमा ही माना है..........माँ मुझे लौट के आना है

गैया चाहे चरे कहीं भी, गौशाला में आना है
पंछी दाना कहीं भी चुगले, नीड़ में आ सो जाना है
जीवन चाहे कहीं भी जीलूं, पर मरने तो यहीं आना है ... माँ मुझे लौट के आना है

--------- जय मरुधर, जय मारवाड़ ---------------