Thursday 21 June 2012

अल्फाज़ लबों से गिरते हैं

अल्फाज़ लबों से गिरते हैं
जब दर्द सा दिल में होता है
कविता तभी निकलती है
जब अन्दर से मन रोता है

लफ़्ज़ों का और अश्क़ों का 
ये नाता बड़ा पुराना है
तब लफ्ज़ ही मोती बनता है
जब आँसू मन से बहता है

नहीं है दिल का दर्द नकारा
ये आशिक़ की जागीरी है
यही दर्द नचाता मीरा को
इसी दर्द से खुसरो बनता है 

Friday 8 June 2012

याद सदा आ जाता है

बीता लम्हा छूटा साथी
लौट कभी नहीं आता है
हर बार अकेलेपन में निर्दयी 
याद सदा आ जाता है

कई साल-महीने बीत गए हैं
हम भी कुछ दिल जीत गए हैं
हर जीता दिल अब भी मुझको
इक हार की याद दिलाता है
हर बार अकेलेपन में निर्दयी
याद सदा आ जाता है

ये अच्छा है तुम छोड़ गए
दिल को ऐसा तोड़ गए
कोई घाव भी गहरा-हल्का
अब दर्द नहीं दे पाता है
हर बार अकेलेपन में निर्दयी
याद सदा आ जाता है

Saturday 17 December 2011

माँ मुझे लौट के आना है

भूमिका:

ट्रेन से दिल्ली आते वक़्त मैंने जब खिड़की से बीकानेर को पीछे छूटते हुए देखा, तब अनायास ही यह काव्य पंक्तियाँ सूझी, जिसे मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत किया है |
कोई व्यक्ति अपना घर-आँगन, अपना गली-मौहल्ला, अपने भाई-बंधुओं को छोड़ सामान्यत: नहीं जाना चाहता | पर कई बार मजबूरी वश किसी न किसी कारण से उसे जाना पड़ता है | कभी पढ़ाई तो कभी रोज़गार, कभी शादी तो कभी एक बेहतर जीवन की तलाश उसे परदेसी बना ही देती है | पर इंसान अपनी जन्मभूमि , जहाँ वह पला बढ़ा, को कभी भुला नहीं सकता | दिल के एक छोटे से कोने में अपने वतन की याद सदा जीवित रहती है |
हिन्दी फिल्म "नमस्ते लन्दन" का एक बेहद सुन्दर गीत है- "मैं जहाँ रहूँ, मैं कहीं भी हूँ, तेरी याद साथ है........."| मेरी मनोव्यथा इसी गीत की भावना से मेल खाती है, जिसे मैंने इस कविता में व्यक्त करने का प्रयत्न किया है |

जय जय राजस्थान... जय बीकानेर !!!!!

कविता:

मुझे लौट के आना है माँ, मुझे लौट के आना है
तेरी ममता छोड़ नहीं जाना है माँ, मुझको घिर घिर आना है

छुक-छुक छुक-छुक रेल दौड़ती, ले जाती परदेसों में
अपना देस जब पीछे छूटा, आ गया पानी आँखों में
नियति में ही जो लिखी जुदाई, तो यह पानी पी जाना है... माँ मुझे लौट के आना है

परदेसों के मित्र भी कभी, अनजाने से लगते हैं
निज घर के तो रजकण भी, जाने पहचाने लगते हैं
अपनापन है प्यार देस में, परदेस मुआ बेगाना है... ....माँ मुझे लौट के आना है

तन तो चाहे कहीं भी हो, मन सदा देस में बसता है
महफ़िल मुजरा कहीं का देखें, बाजा देसी जचता है
मैंने अपनी मरुधरा को, स्वर्गसमा ही माना है..........माँ मुझे लौट के आना है

गैया चाहे चरे कहीं भी, गौशाला में आना है
पंछी दाना कहीं भी चुगले, नीड़ में आ सो जाना है
जीवन चाहे कहीं भी जीलूं, पर मरने तो यहीं आना है ... माँ मुझे लौट के आना है

--------- जय मरुधर, जय मारवाड़ ---------------


Monday 22 August 2011

भ्रम और मेरी प्रीत पुरानी

भ्रम और मेरी प्रीत पुरानी
घाव हजारों यही निशानी ......

जब लगता यही मीत है मेरा
जब लगा बजा संगीत है मेरा
तब ही महफ़िल हो गयी वीरानी
भ्रम और मेरी प्रीत पुरानी

तार बंधे थे बजी न वीणा
बना प्यार पग पग मृगतृष्णा
प्यास रह गयी मिला न पानी
भ्रम और मेरी प्रीत पुरानी

एक रंग ना दीजिये

प्यार को कोई कभी भी एक रंग ना दीजिये
जब मिले जिससे मिले आदर तो थोडा दीजिये
ज़ोर  चलता ही नहीं भावों के इस संसार में
नफ़रत किसी की चाहतों से क्यों कभी भी कीजिये

क़ानून कुदरत का कोई कभी प्यार पर चलता नहीं
प्रीत की इस रीत में ना कुछ गलत ना कुछ सही
रुख नदी का मोड़ना क्या उसे मुक्त बहने दीजिये
प्यार को कोई कभी भी एक रंग ना दीजिये

Wednesday 10 August 2011

मातृभूमि वत्सले !!

देह की हर कोशिका में, तू बसी है वत्सले
रक्त की हर बूँद में, तू ही छुपी है वत्सले
मन का ऐसा कौन सा कोना बताऊँ वत्सले
जहाँ नहीं है नाम तेरा मातृभूमि वत्सले !!!

पाप कर्मों के उदय से, दूर तुझसे वत्सले
पर चाहता हूँ संग तेरा हर घड़ी, हे वत्सले
कब यह पिपासा ख़त्म होगी क्या बताऊँ वत्सले
जब गोद तेरी सिर धरुंगा मातृभूमि वत्सले !!!

हे मरुधरा ! हे जन्मभूमि ! हे स्वर्गातुल्या वत्सले
वीरों की क्रीडास्थली हे समरभूमि वत्सले !
भक्ति में आकण्ठ डूबी तीर्थभूमि वत्सले !
रंग ममता के रंगी हे मातृभूमि वत्सले !

परदेस की इन वीथियों में गुम गया हूँ वत्सले
ना प्यार है ना स्नेह है वात्सल्य भी ना वत्सले
मेरे मन की सूनी गलियाँ क्या बताऊँ वत्सले
घर लौटने की टीस भरती मातृभूमि वत्सले !!!


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शब्दार्थ :
वात्सल्य - प्रेम, स्नेह, दुलार
वत्सले - जो वात्सल्य से भरी हो ऐसी स्त्री के लिए संबोधन
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मेरी जन्मभूमि, मेरी मातृभूमि बीकानेर को समर्पित यह पुष्प
राजा बाँठिया, ११ अगस्त २०११ गुरूवार
दिल्ली
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Sunday 13 February 2011

An Endless Wait for Facebook Pings !!


Of the 300 good friends on the list
At times I felt, only you exist
Only your status mattered to me
Only your photos I loved to see
Only your 'Like' motivated me
Only your comments elated me
They said I am addicted to Facebook
Who knew I was addicted to a face

This Love compelled me to wait
Even when I knew
You had gone away
I then realized that
You had never been mine
It was just an illusion in my mind

Still,

I do not know
I keep hitting the chat window
To see if you are online
To see if there is any hope
And my luck works this time
To see if a pop up rings
But sadly it has turned into
An Endless Wait for Facebook Pings !!!