देह की हर कोशिका में, तू बसी है वत्सले
रक्त की हर बूँद में, तू ही छुपी है वत्सले
मन का ऐसा कौन सा कोना बताऊँ वत्सले
जहाँ नहीं है नाम तेरा मातृभूमि वत्सले !!!
पाप कर्मों के उदय से, दूर तुझसे वत्सले
पर चाहता हूँ संग तेरा हर घड़ी, हे वत्सले
कब यह पिपासा ख़त्म होगी क्या बताऊँ वत्सले
जब गोद तेरी सिर धरुंगा मातृभूमि वत्सले !!!
हे मरुधरा ! हे जन्मभूमि ! हे स्वर्गातुल्या वत्सले
वीरों की क्रीडास्थली हे समरभूमि वत्सले !
भक्ति में आकण्ठ डूबी तीर्थभूमि वत्सले !
रंग ममता के रंगी हे मातृभूमि वत्सले !
परदेस की इन वीथियों में गुम गया हूँ वत्सले
ना प्यार है ना स्नेह है वात्सल्य भी ना वत्सले
मेरे मन की सूनी गलियाँ क्या बताऊँ वत्सले
घर लौटने की टीस भरती मातृभूमि वत्सले !!!
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शब्दार्थ :
वात्सल्य - प्रेम, स्नेह, दुलार
वत्सले - जो वात्सल्य से भरी हो ऐसी स्त्री के लिए संबोधन
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मेरी जन्मभूमि, मेरी मातृभूमि बीकानेर को समर्पित यह पुष्प
राजा बाँठिया, ११ अगस्त २०११ गुरूवार
दिल्ली
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