Thursday, 21 June 2012

अल्फाज़ लबों से गिरते हैं

अल्फाज़ लबों से गिरते हैं
जब दर्द सा दिल में होता है
कविता तभी निकलती है
जब अन्दर से मन रोता है

लफ़्ज़ों का और अश्क़ों का 
ये नाता बड़ा पुराना है
तब लफ्ज़ ही मोती बनता है
जब आँसू मन से बहता है

नहीं है दिल का दर्द नकारा
ये आशिक़ की जागीरी है
यही दर्द नचाता मीरा को
इसी दर्द से खुसरो बनता है 

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